डॉ. सी. वी. रमन विश्वविद्यालय में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, छत्तीसगढ़ प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में “चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास तथा विकसित भारत में आत्मनिर्भर भारत की भूमिका” विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला 29 से 31 अक्टूबर तक आयोजित हुई, जिसमें देशभर से आए शिक्षाविदों एवं विद्वानों ने भारतीय ज्ञान परंपरा के माध्यम से समग्र विकास और आत्मनिर्भरता के महत्व पर अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यशाला के दूसरे दिन मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित सौराष्ट्र विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. नीलांबरी दवे ने “आनंदमय कोष” विषय पर विस्तार से अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि “आनंद का कोई विलोम शब्द नहीं होता, इसलिए हमें आनंद में जीना सीखना चाहिए। इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता, अतः व्यक्ति को संतुष्टि की ओर विचार करना चाहिए। जीवन के हर पल को आनंद के साथ जीना ही शांति का मार्ग है। श्रद्धा के साथ सहजता से बहना ही आनंदमय जीवन का मूल मंत्र है।”